Saturday, April 17, 2010

Education Sector in India

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Saturday, December 19, 2009

नाव

बचपन में  मैंने सोचा था, वास्कोडिगामा बन जाऊंगा !
जब दूंढूंगा सपनो का भारत,एक कागज की नाव बनाकर !!
नाव खुलेगी  आँगन मेरे, होंगे उसमें लोग बहुतेरे !
मैं ,संता ,इब्राहम ,थोमस -राधा,  मलिका और मिरामस !!
मैं लाऊंगा पूरी- जलेबी ,मलिका  लाये  दूध- सेवई 
हलवा तो  संता ही लाये,ईद और होली  साथ मनाएं !!
मिरामस की उपमा खा खा कर,खूब मनाएंगे हम क्रिसमस !!

सोचता रहता था  मैं हर पल,सोहन को लूं , या ना  लूं
अपनी चीजें खुद खाता है,हम सब को सिहाता है !!
फिर मैंने  टीवी पर एक  दिन "भारत एक खोज" है देखा
लम्बा  कुरता  और टोपी में एक नए इंसान को देखा !!
सायद यह है वास्कोडिगामा,.....
पुछा  जब मैंने बाबा से,बोले ये हैं चाचा नेहरु !!
मैं तब फिर पड़ गया सोच में,फिर मैंने बाबा से पुछा
भारत को किसने है खोजा ?  
बाबा भी पर गए सोच में,आँखे बंद कर लम्बी सांस ले
बोले  बस इतना समझ ले ,अपने हिस्से के भारत को सबने अपने ढंग से खोजा !!
बात मेरे कुछ  समझ ना आई, फिर भी मैंने  ली अंगराई
इच्छा मेरी और दृढ हुई,चाचा नेहरु बन जाऊंगा
जब दूंढूंगा अपना एक  भारत, एक कागज की नाव बनाकर !!

Monday, November 16, 2009

पवन

                                                           
                  
ना जाने कब चादर फैला , तेरे लंबे बालों का !  
मैं मदमस्त पवन सा बहता, मरता तुझ पे पागल सा !!

तेरी पलकें झुकती जब तो मेरे दिल की शाम ढले !
मरना चाहूँ उस पलकों पर ,पर दिल का कुच्छ भी न चले !!
ना जाने कब चादर फैला ..............................

तेरी आँचल उरती ऐसे , मुझ पर पागल बादल सी !
तुम ना मानों लेकिन है यह एक निसानी उल्फत की !!
ना जाने कब चादर फैला .....................

महक उठी हैं फिजायें अब तो ,तेरे गेसूगंध लिए !
रोक न पाऊँ मैं ख़ुद को अब, कोई कितनी भी जंजीर कसे !!
तुझ से मिलने की ख्वाइश को , लोग लड़कपन कहते हैं !
तुझ पर मिटने की चाहत को , लोग पागलपन कहते हैं !!
माना मैं हूँ यायावर फिरता हूँ उन्माद लिए , लौट न जाऊँ घर को अपने इतनी सी फरियाद लिए !
चला था तुझ में खो जाने को पर लौट आया अवसाद लिए !!

Wednesday, November 11, 2009

आंशु

आंशु वह नही जो बरसती रहे
उसकी सार्थकता तो बस दो बूंदों में ही है
जो हृदय को चीरती भी है
बाँध को तोरती भी है,
फिर भी गिरती है
बस दो बूंदों के रूप में ही !
या कभी वह भी नही
बस पलकें ही गीला करती है !!
जो बसकर कर गिरे , वो घरियाली है
और जो गिर कर भी न दिखाई दे , वही आंशु है!!!

Tuesday, November 10, 2009

सपना

उससे मुलाकात तो अधूरी थी ,
दिल में जज्बात मगर पूरे थे !
गुलशन में खरी सायद वो अकेली थी ,
लगा कोई उलझी हुई पहेली थी !
गगन के तारों से बालो को सजाया था उसने ,
बाल काले बहुत छोटे थे , गेसूओं में गंध मगर पूरी थी !
किसी शिल्पकार की मूर्ति की तरह सायद वो अबोली थी
तन ढका था उसका मगर , उभार उसमें पूरे थे !
मैं दौरा की उसको अपनी बाँहों में भर सकूं ,
उसके नर्म ओठों को गति दे सकूं ,
मगर आँख खुली तो पाया ,वो मेरा सपना था ,
माना वो मेरा सपना था , सचाई उसमें मगर पूरी थी !!

दिया

एक विरान सी जगह थी,
जहाँ सिर्फ़ अँधेरा था !!
उस अँधेरा में एक खंडहर था,
जिस खंडहर पर एक दिया थी !!
उस दिये में सिर्फ़ बाती थी (तेल नही था ),
उस बाती में एक मधिम ज्वाला थी !!
पर उसकि मधिमता में भी बरी जलन थी ,
इस बात का मुझे एहसास था !!
क्यूंकि वो विरानगी मेरी अपनी थी,
वो अँधेरा मेरा अपना था,
वो खंडहर मेरा घर था,
वो दिया मेरी जिन्दगी थी ,
और वो बाती मै खुद था !!

पथिक

जाने वाले अनजान पथिक ,रुक देख जरा मुर कर पीछे
तेरे राह के कोने में एक बेबस और लाचार परा है !!
तन मन दोनों से विकलांग हो ,राह तुम्हारी देख रहा है
राह देखते उन नयनों की दो बूँदें तुम हर लाओ
अपने हृदय के उपवन से कुच्छ स्नेह पुष्प तुम बरसाओ !!
वह छुद्र सही वह शुद्र सही वह तो किस्मत का मारा है
पर तेरे समान जगतपिता का वह भी एक दुलारा है !!
पूर्ब जन्म की किसी भूल की सजा को वह काट रहा है
जीवन की लम्बी दूरी को भूका नंगा नाप रहा है !
आओ हम सब मिल कर चलें, गाँधी का सपना साथ चले
हर अश्रुबून्द पोछ लायेंगे , भारत को स्वर्ग बनायेंगे !!

आदमी और बिजली का खम्बा - मानिक वर्मा

शायर की बीवी : हास्य वयंग